यदि पूज्य संतों, महंतों, शास्त्रियों और प्रसिद्ध कथावाचकों से लेकर सत्यनारायण भगवान की कथा कहने वाले पूज्य ब्राह्मणों तथा गांव देहात में श्री रामचरित मानस और श्रीमद् भागवत कथा कहने वाले प्रवचनकर्ताओं तक मेरा यह आलेख पहुंचेगा और किसी एक ने भी मेरे भाव को समझ लिया तो मेरा लिखना सार्थक हो जाएगा। पहले दो प्रसंग पर ध्यान आकर्षित कर रहा हूं।
प्रसंग एक : मेरा एक हिंदू परिवार में जाना हुआ। पढ़ा लिखा परिवार था। उनके दरवाजे पर अचानक दो सांड लड़ते हुए आए और उनकी गाड़ी में टकरा गए, महंगी गाड़ी में दोंचा आ गया। वो अंदर से पानी का जग भरकर लाए और सांड पर फेंका ताकि वो भाग जाएं। लेकिन सांडों का संघर्ष जारी रहा मैंने कहा ये ऐसे नहीं भागेंगे आप डंडा लाओ। वो अंदर गए लेकिन फिर से एक जग पानी भर कर लाए लेकिन तब तक सांड वहां खड़ी उनकी एक बाइक पटक कर भाग गए। मैने फिर कहा भाई साहब पानी के बजाए आप पहली बार में ही डंडा लाते तो बाइक बच सकती थी। इसपर उनका जबाव सुनकर मैं स्तब्ध हुआ। वो बोले भाई अपने को डंडे की जरूरत कभी पड़ी ही नहीं इसलिए घर में डंडा है ही नहीं।
प्रसंग दो: आज एक व्यापारी ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार बहुत गलत हो रहा है, ऐसा नहीं होना चाहिए। लेकिन शहर में रैली निकाली इससे क्या होगा? वैसे तो ये उक्त व्यापारी की जागरूकता और समझ पर ही सवाल था। फिर भी मैंने कहा कि यहां के लोगों को भी अपने भविष्य की कल्पना हो, जो चल रहा है उससे अवगत हों, संगठित रहने की आवश्यकता को समझें और समय रहते अपनी सुरक्षा, अपने धर्म की सुरक्षा को लेकर उपाय करें इस संदेश के लिए संभवतः ऐसे आयोजन होते हैं।
वो फिर बोला कि ये तो सरकार का काम है, अपन कौन से लड़ते फिरेंगे? मैने फिर कहा कि भाई अपने को लड़ना थोड़ी है लेकिन आत्मरक्षा, मानरक्षा, धनरक्षा की जिम्मेदारी तो अपनी है कि नहीं? जैसे तुम चार लोग हो तो दुकान में कम से कम चार बेंत तो रख सकते हो कि कभी सुअरों का झुंड आए तो उन्हें भगा सको। लेकिन वो मेरी बात समझने यह कहकर तैयार नहीं हुआ कि फिर इतनी सारी पुलिस, सेना किसलिए है!
ये है आम हिंदू समाज की स्थिति। जो हिंदू पाकिस्तान, बांग्लादेश को अपना वतन मानकर वहीं बसे रहे, उनकी आज दुर्दशा और लगातार घटती आबादी देखकर भी हमारी समझ नहीं बढ़ रही। भारत में ही पश्चिम बंगाल, केरल, मणिपुर में हिंदुओं की हालत देखकर भी हिंदुओं में सुधार नहीं हो रहा। यहां के हिंदुओं को लगता है कि अपन सुरक्षित अपने को क्या! हम अपना गुलामी का भरपूर इतिहास देखकर भी संगठित और सबल नही होना चाहते। इस दृश्य को बदलने का बीड़ा हमारे संतों, महंतों, शास्त्रियों, प्रवचनकर्ताओं, कथवाचकों को उठाना होगा।
हमारे सभी देवी देवताओं के हाथ में शास्त्र के साथ शस्त्र भी है। हमारे कन्हैया, लड्डू गोपाल के रूप में अठखेलियां ही नहीं करते रहे, बल्कि उन्होंने शेषनाग के फन पर नृत्य भी किया। कंस का वध भी किया और शस्त्र न उठाने के संकल्प के बाद भी महाभारत के युद्ध में अर्जुन का सारथी बनकर रथ के पहिए को सुदर्शन चक्र की भांति चलाकर न्याय भी किया।
ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैजनिया जैसी ममत्व की कथा और बाल अठखेलियों से आगे प्रभु श्री राम ने तमाम आतातायियों का अंत किया, साधुओं की रक्षा की। रावण का वध किया। ऐसे ही भोले शंकर ने बेलपत्री के प्रयोग मात्र से ही सारी समस्या का समाधान नहीं दिया बल्कि उन्हें भी देवों की रक्षा के लिए विष पीना पड़ा और जरूरत पड़ने पर उन्होंने तांडव करके प्रलय भी मचाई।
इसलिए अपनी व अपने धर्म की रक्षा की जिम्मेदारी को भी हिंदू समाज समझे। अपने सोए पुरुषार्थ को जगाए। सज्जनों की रक्षा के लिए खुद को सबल बनाए, ऐसा आह्वान प्रत्येक कथा और प्रवचन में हमारे पूज्य ब्राह्मण विद्वानों को जोर देकर अवश्य करना चाहिए। यह आज के समय की मांग है कि हमारा समाज, शास्त्र के साथ साथ शस्त्र के महत्व को भी समझे और क्षात्र धर्म का पालन करना सीखे। बिना शस्त्र के ज्ञान के न तो हमारे शास्त्र सुरक्षित रह सकते, न मंदिर, न हम और न हमारी बहन बेटियां।
ब्राह्मणों ने हमेशा समाज को दिशा देने का काम किया है। अनादि काल से राजपाठ से लेकर 16 संस्कारों का सम्पूर्ण विधान भी ब्राह्मणों के मार्गदर्शन में हुआ है। ब्राह्मणों ने ही इस धराधाम पर श्रीकृष्ण और श्रीराम को गढ़ा है, जिनकी पूजा सम्पूर्ण हिंदू समाज करता है। छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप को भी ब्राह्मण ने तराशा, जो इतिहास में अमर हैं और वीरता, साहस, शौर्य और हिंदुरक्षक के रूप में पूज्य हैं। आज ब्राह्मणों को फिर अपनी उसी भूमिका में वापस आना होगा जिसमें वह हिंदू सभ्यता पर भविष्य के खतरे को भांपकर समाज को सबल बनाने की दिशा में नित्य प्रेरित करे। आज फिर उन चाणक्यों की जरूरत है जो अनेकों चंद्रगुप्त गढ़ सकें।
मेरा विश्वास है कि घरों में सत्यनारायण भगवान की कथा करने से लेकर राष्ट्रीय स्तर के प्रवचनकर्ता, कथावाचक, संत, महंत, शास्त्री, पुजारी आदि समाज में शक्ति के जागरण का बीड़ा उठा लेंगे। हिंदुओं को सबल बनने और हर स्थिति से निबटने की सीख देने की मुहिम छेड़ देंगे, हर घर में एक धर्मवीर बनाना प्रारंभ कर देंगे तो किसी की ताकत नहीं जो हिंदू, हिंदुत्व और सनातन की तरफ बुरी नजर उठा कर देख सके।
Author Ashish Shinde Guna